न ही विवाहिता करती है चांद की पूजा न ही रखती हैं व्रत न हीं सोलह शृंगार श्रापित है ये मोहल्ला मथुरा का…….

बिक्रमजीत सिंह

(सांसार वाणी) देश भर में करवा चौथ का त्योहार मनाया जा रहा है.इस दिन हिंदू विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए निर्जला व्रत रखती हैं. इस दिन हर महिला की चाहत होती है कि वो खूब अच्छे से सोलह श्रृंगार करें और सबसे सुंदर नजर आए.लेकिन उत्तर प्रदेश के मथुरा में एक मोहल्ला ऐसा भी है जहां इस दिन अधिक अंधेरा रहता है. यानी कि यहां कोई महिला करवाचौथ नहीं करती और नहीं श्रृंगार और पूजा करती है. इसके पीछे की कहानी हैरान करनी वाली है.कहा जाता है कि बात सैकड़ों वर्ष पुरानी है जब नौहझील के गांव रामनगला का एक ब्राह्मण युवक यमुना के पार स्थित ससुराल से अपनी नवविवाहिता पत्नी को विदा कराकर ला रहा था. वह सुरीर के रास्ते भैंसा बुग्गी से लौट रहा था. तभी रास्ते में सुरीर के कुछ लोगों ने बुग्गी में चल कर आ रहे भैंसे को अपना बता कर विवाद शुरू कर दिया. इस विवाद में सुरीर के लोगों के हाथों गांव रामनगला के इस युवक की हत्या हो गयी.अपने ही सामने पति की मौत से कुपित नई दुल्हन इस मुहल्ले के लोगों श्राप देते हुए कहा कि जैसे में अपने पति के शव के साथ सती हो रही हूं, उसी तरह आप में से कोई भी महिला , अपने पति के सामने सज धज कर सोलह श्रृंगार करके नहीं रह सकती. इसे सती का श्राप कहें कि पति की मौत से बिलखती पत्नी के कोप का कहर. ये घटना मोहल्ले पर काल बन कर टूटी और जवान युवकों की मौत होने लगी. तमाम विवाहितायें विधवा हो गयीं और मोहल्ले पर मानो आफत की बरसात सी होने लगी. उस समय बुजर्गों ने इसे सती के कोप का असर माना और उस सती का मन्दिर बनवाकर क्षमा याचना कीश्राप से मुक्ति की पहल को तैयार नहीं कोई महिलाबुजुर्ग महिला सुनहरी देवी ने सती मां की जानकारी देते हुए बताया- कहा जाता है कि सती की पूजा अर्चना करने के बाद अस्वाभाविक मौतों का सिलसिला तो थम गया लेकिन महिलाएं यहां सुहाग सलामती के लिए करवाचौथ का व्रत नहीं रखतीं और न ही हम अपनी बेटियों को करवा चौथ पर कोई भेंट देते हैं.तभी से इस मोहल्ले के सैकड़ों परिवारों में कोई विवाहिता न तो सजधजकर श्रृंगार करती है और न ही पति के दीर्घायु को करवा चौथ का व्रत रखती है. सैकड़ों वर्ष से चली आ रही इस परम्परा का पीढ़ी दर पीढ़ी निर्वहन होता चला आ रहा. इस श्राप से मुक्ति की पहल करने के लिए कोई विवाहिता तैयार नहीं होती है. पहले से चली आ रही इस परम्परा को तोड़ने में सभी को सती के श्राप के भय से उन्हें अनिष्ट की आशंका सताती है.

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