बिक्रमजीत सिंह
ऋषिकेश (संसार वाणी)21 जुलाई। आज पूरा देश श्रावण मास के दूसरे सोमवार को भगवान शिव की भक्ति में लीन है, वही दूसरी ओर यह दिन भारत के इतिहास में एक और विशेष स्मृति को सजीव करता है। 22 जुलाई 1947 को, भारत की संविधान सभा ने राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे को औपचारिक रूप से स्वीकार किया था। यह हमारी स्वतंत्रता, एकता और देशभक्ति का अमिट चिन्ह है।देशभर के लाखों श्रद्धालु कांवड़ यात्रा के माध्यम से गंगा जी का जल भरकर नीलकंठ महादेव व अन्य शिवधामों तक पहुंचते हैं और शिवलिंग का अभिषेक करते हैं। यह भक्ति, सेवा और समर्पण का अद्भुत उदाहरण है। ऐसे में जुलाई माह में शिवभक्ति और राष्ट्रभक्ति का अद्भुत संगम हो रहा है जो हमें देवभक्ति के साथ देशभक्ति का संदेश दे रहा है।भारत का राष्ट्रीय ध्वज एकता, शांति और प्रगति का प्रतीक है। तिरंगे का केसरिया रंग बलिदान, साहस और आत्मशक्ति का प्रतीक है, सफेद रंग सत्य, शांति और पवित्रता का द्योतक है और हरा रंग समृद्धि, प्रगति और प्रकृति के साथ संतुलन का संदेश देता है। इन तीनों रंगों के मध्य स्थित अशोक चक्र, धर्म, न्याय और निरंतर गति का प्रतीक है, भारत को सांस्कृतिक चेतना और श्रेष्ठ संकल्पों का स्मरण कराता है।स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा

कि कांवड़ यात्रा में दिखने वाली निष्ठा, अनुशासन और सेवा की भावना तिरंगे में समाहित मूल्यों की सजीव अभिव्यक्ति है। हर वह श्रद्धालु जो जल लेकर पैदल चलता है, वह एक जीवंत उदाहरण है उस सेवा भाव का, जो शिव के प्रति समर्पण के साथ-साथ राष्ट्र के लिए भी प्रेरणास्पद है। श्रावण मास में कांवड़ यात्रा का सड़कों पर एक अद्भुत दृश्य दिखाई देता है। श्रद्धा, समर्पण और संकल्प से भरे हुए हजारों कांवड़ियाँ, उनके कंधों पर गंगाजल से भरे कांवड़, हाथों में एक ओर भगवान शिव की ध्वजा और दूसरी ओर तिरंगा। यह दृश्य धार्मिक भक्ति के साथ राष्ट्रीय-सांस्कृतिक संदेश भी है।जब कांवड़ यात्री शिव की ध्वजा के साथ तिरंगा लेकर निकलते हैं, तो वे यह स्पष्ट संदेश है कि धर्म और राष्ट्र अलग नहीं हैं। धर्म आत्मिक चेतना का स्रोत है और राष्ट्र उस चेतना का कार्यक्षे़त्र है। शिवभक्ति हमें भीतर से जागृत करती है, हमारे विचारों को निर्मल बनाती है, अहंकार को भस्म करती है और करुणा, क्षमा व सेवा का भाव जगाती है। वहीं, तिरंगा हमें हमारी बाह्य जिम्मेदारियों की ओर प्रेरित करता है, राष्ट्र के प्रति कर्तव्य, समाज के प्रति सेवा और संविधान के प्रति निष्ठा का स्मरण कराता है।स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि देव भक्ति व देश भक्ति का यह समन्वय ही भारत की आत्मा है, जहां पूजा में परमात्मा है और कर्म में राष्ट्रधर्म। यही भाव भारत को एक अद्वितीय राष्ट्र के रूप में स्थापित करता है। आज जरूरत है कि हम इसी भावना को अपनाएं और शिवभक्ति को राष्ट्रभक्ति में परिवर्तित करें।